गुरुवार, 29 जून 2017

जहांपनाह! कभी-कभी तोहफा कबूल नहीं करना चाहिए ! एक और शिक्षाप्रध कहानी देवेन्द्र सिंह राजपूत की 

बहुत पुरानी बात है जापान के एक गांव में बूढ़ा समुराई योद्धा रहता था। दुनियाभर में वह जहां भी लड़ा, सभी को उसने हरा दिया। जब समुराई बूढ़ा हो गया तो एक विदेशी समुराई ने उससे युद्ध करने की इच्छा जाहिर की।
बूढ़े समुराई ने युद्ध न करने की सलाह उसे दी, लेकिन उसने यु्द्ध के लिए हां कहा। युद्ध तय समय पर शुरू हुआ। विदेशी समुराई उस बूढ़े समुराई को अपमानित करने लगा।
उसने उन्हें गुस्सा दिलाने के सारे प्रयास किए, लेकिन घंटों बाद भी उन्हें गुस्सा नहीं आया। यह देखकर विदेशी समुराई ने पैरों से धूल उड़ा दी। इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी बूढ़े समुराई ने कुछ न कहा।
वह पहले की ही तरह शांत और धीर गंभीर बने रहे। विदेशी योद्धा अपनी हार मानते हुए चला गया। यह देखकर बूढ़े समुराई के शिष्य हैरान थे उन्होंने पूछा, 'आपका इतना अपमान हुआ फिर भी आप चुप रहे।'
तब उनके गुरु ने कहा, 'यदि कोई तुम्हें तोहफा दे और तुम उसे स्वीकार न करो तो वह किसका होगा?' शिष्यों ने कहा, 'तोहफा देने वालों का ही होगा।' गुरु बोले, 'मैंने भी उसकी गालियों को स्वीकार नहीं किया। तो वह उसके पास ही गईं।'
संदर्भ
विवेक के प्रयोग से हम विरोधियों को भी सकारात्मक संदेश देकर उनका हृदय परिवर्तन सकते हैं।

यह कहानी सिद्ध करती है कि हर काम में है आनंद

बहुत पुरानी बात है एक गांव में कुछ मजदूर पत्थर के खंभे बना रहे थे। तभी वहां से एक संत गुजरे। उन्होंने एक मजदूर से पूछा यहां क्या बन रहा है? उसने कहा देखते नहीं पत्थर काट रहा हूं? संत ने कहा हां, देख तो रहा हूं। लेकिन यहां बनेगा क्या? मजदूर झुंझला कर बोला मालूम नहीं।
यहां पत्थर तोड़ते-तोड़ते जान निकल रही है और इनको यह चिंता है कि यहां क्या बनेगा। साधु आगे बढ़े। एक दूसरा मजदूर मिला। संत ने पूछा यहां क्या बनेगा? मजदूर बोला देखिए साधु बाबा, यहां कुछ भी बने।
चाहे मंदिर बने या जेल, मुझे क्या। मुझे तो दिन भर की मजदूरी के रूप में 100 रुपए मिलते हैं। बस शाम को रुपए मिलें और मेरा काम बने। मुझे इससे कोई मतलब नहीं कि यहां क्या बन रहा है। साधु आगे बढ़े तो तीसरा मजदूर मिला। साधु ने उससे पूछा यहां क्या बनेगा? मजदूर ने कहा मंदिर।
इस गांव में कोई बड़ा मंदिर नहीं था। इस गांव के लोगों को दूसरे गांव में उत्सव मनाने जाना पड़ता था। मैं भी इसी गांव का हूं। ये सारे मजदूर इसी गांव के हैं। मैं एक-एक छेनी चला कर जब पत्थरों को गढ़ता हूं तो छेनी की आवाज में मुझे मधुर संगीत सुनाई पड़ता है। मैं आनंद में हूं।
कुछ दिनों बाद यह मंदिर बन कर तैयार हो जाएगा और यहां धूमधाम से पूजा होगी। मेला लगेगा। कीर्तन होगा। मैं यही सोच कर मस्त रहता हूं। मेरे लिए यह काम, काम नहीं है। मैं हमेशा एक मस्ती में रहता हूं। मंदिर बनाने की मस्ती में। मैं रात को सोता हूं तो मंदिर की कल्पना के साथ और सुबह जगता हूं तो मंदिर के खंभों को तराशने के लिए चल पड़ता हूं।
बीच-बीच में जब ज्यादा मस्ती आती है तो भजन गाने लगता हूं। जीवन में इससे ज्यादा काम करने का आनंद कभी नहीं आया। साधु ने कहा- यही जीवन का रहस्य है मेरे भाई। बस नजरिया का फर्क है।
संक्षेप में
आप जो भी काम करें उसमें आनंद ढूंढ लें। काम स्वतः ही आनंदमय हो जाएगा।


Created By :- Devendra Singh Rajput